उत्तर (सी)
सबसे पेचीदा सवालों में से एक! 2015 में सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस चेलमेश्वर और अभय मनोहर सप्रे के बेंच में दायर प्रकरण "राजबाला एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य” में दिए गए निर्णय दिनांक 10 दिसंबर 2015 के आधार पर दशकों से कई न्यायिक घोषणाएं समाप्त हो गईं,
जिसमे यह उल्लेखित है कि "उपरोक्त दो आधिकारिक घोषणाओ के प्रकाश में, हमारा सुविचारित अभिमत हैं कि
दोनों अधिकार यथा "मताधिकार" और "निर्वाचित होने का अधिकार" एक नागरिक के संवैधानिक अधिकार हैं"। इस मुद्दे का कुटिल इतिहास -
(1) संविधान का अनुच्छेद 326 वयस्कों को मताधिकार प्रदान करता है, लेकिन "मताधिकार" का उल्लेख नहीं करता है,
(2) भारत के संविधान का ६१वाँ संशोधन में मतदान की उम्र 21 साल से 18 साल की गयी,
(3) सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिमत दिया है कि ऐसे अधिकारों को जिन्हें संविधान में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं किया गया है, जैसे कि गोपनीयता का अधिकार, सामान्यतया अंतर्निहित रूप में पढ़ी जाती है, और सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा "... लेकिन यह प्रक्रिया "मताधिकार" का वर्णन नहीं करती है और यह हमेशा एक अविच्छेद्य संवैधानिक अधिकार के रूप में कायम नहीं था",
(4) फिर सर्वोच्च न्यायालय का यह कथन ... यह परेशान करने वाली बात है कि अदालत अभी भी मताधिकार को संवैधानिक अधिकार स्वीकार नहीं करती है। चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी अक्सर अधिकारों के प्रवेश द्वार के रूप में या अधिकारों के अधिकार के रूप में देखी जाती है।
(5) सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा " एन पी पोन्नुस्वामी बनाम रिटर्निंग ऑफिसर, नमक्कल निर्वाचन क्षेत्र, नमककल, सलेम, एआईआर 1952 एससी 64 और ज्योति बसु और अन्य बनाम देवी घोषाल और अन्य, (1982) 1 एससीसी 691, के सुनवाई प्रकरणों में सर्वोच्च न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि "मताधिकार" यदि मौलिक अधिकार नहीं है तो यह निश्चित रूप से एक "संवैधानिक अधिकार" है और "इसे एक वैधानिक अधिकार मानना, बहुत सटीक नहीं है, शुद्ध और सरल रूप में, यह कहा गया है कि मत देने की स्वतंत्रता मताधिकार से अलग है, यह मूलभूत अधिकार का एक पहलू है जिसका वर्णन अनुच्छेद 19 (1) (ए) में है, (एफ) किन्ही एक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने, पीयूसीएल के मामले में, देशीय मुरपोकु द्रविड़ कज़गम (डीएमडीके) और अन्य बनाम भारतीय चुनाव आयोग (2012) 7 एससीसी 340 प्रकरण में यह कहा कि "...... इस देश के हर नागरिक को संविधान द्वारा बनाई गई किसी भी विधायी निकाय के लिए चुने जाने अथवा इस हेतु मताधिकार का प्रयोग, एक संवैधानिक अधिकार है ...।" यह विवरण इस प्रश्न (प्रीलिम्स 2017) का भी हल होना चाहिए!
सर्वश्रेष्ठ उत्तर है (सी) ।
(संदर्भ लिंक: http://www.bodhibooster.com/p/legalreferences.html)